2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ से पहले शिप्रा नदी के संरक्षण और स्वच्छता के लिए 17 घाटों के पुनरुद्धार के साथ आकर्षक रिवर फ्रंट की योजना बन चुकी है। वहीं उज्जैन और इंदौर का दूषित जल शिप्रा में मिलने से रोकना, उज्जैन में ग्राउंड वाटर रिचार्ज सुधारना और सप्त सरोवरों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है।
सिंहस्थ की तैयारियों के क्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शिप्रा के संरक्षण और संवर्धन सहित उज्जैन के विकास पर कई बैठकें ले चुके हैं। इसके बाद सरकार द्वारा लगभग 700 करोड़ रुपए बजट वाला एक्शन प्लान बनाया गया है। 2016 में हुए सिंहस्थ में जहां लगभग 7.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने शिप्रा में डुबकी लगाई थी, वहीं 2028 में ये संख्या दोगुनी होने की संभावना है।
प्राचीन घाटों को सुधारकर बनेगा रिवर फ्रंट
- शिप्रा तट पर बने 17 घाटों को सुधारकर पर्यटकों के लिए आकर्षक रिवर फ्रंट बनाया जाएगा। घाटों को बेहतर कनेक्टिविटी से आपस में जोड़ा भी जाएगा।
- घाट पर ही गंदे पानी को साफ करने की सुविधाएं विकसित होंगी। करीब 22 किमी में फैले इन घाटों को ऐतिहासिक संरचना के हिसाब से पुनर्जीवित किया जाएगा।
- नहाने, दूषित जल, ठोस कचरे के प्रबंधन के साथ अनुष्ठान के लिए व्यवस्था होगी। नदी को दूषित करने वाले 11 शहरी, 20 ग्रामीण नाले डाइवर्ट होंगे।
- घाटों पर सेफ्टी चेन, लाइटिंग के साथ वेंडरों को भी व्यवस्थित किया जाएगा।
- 2028 के आयोजन को ध्यान में रखकर वर्तमान में बने प्लेटफॉर्मों का सुधार होगा, विक्रय क्षेत्र व्यवस्थित होगा।
सात झीलों का होगा पुनरुद्धार -बैराज-छोटे डेम बनाकर शिप्रा में अतिरिक्त 170 मिलियन घमी जल इकट्ठा करेंगे। हाटपिपल्या और सांवेर सिंचाई परियोजनाओं से भी जल आएगा। शहर के 121 प्राचीन कुएं -बावड़ियों का सुधार होगा। नगर की 7 झीलों (सप्त सरोवर) को सुधारकर पर्यटक स्थल विकसित होंगे। ठोस कचरे को जल में मिलने से रोकने के लिए 230 टीपीडी का प्लांट और जैविक कचरे के लिए 50 टीपीडी का प्लांट लगेगा।
अभी ये दिक्कत… हर स्नान पर नर्मदा का पानी लेते हैं
- शिप्रा के मुख्य रामघाट से लेकर आमने-सामने के सभी घाट की बात करें तो यह ऊंचे-नीचे है, जिसके चलते एक जैसे प्लेटफाॅर्म नहीं होने की वजह से पानी का लेवल भी कहीं कम तो कहीं अधिक है। बाहर से आने वाले श्रद्धालु इसी कारण गफलत के चलते नदी में डूबकर हादसे का शिकार होते हैं।
- शिप्रा नदी के घाटों पर 13.30 करोड़ की लागत से एक जैसे प्लेटफाॅर्म और रेलिंग लगाई जाने का टेंडर तक जारी हो चुका है लेकिन 2 साल से काम ही नहीं हुआ जिसके चलते श्रद्धालुओं की मौत जारी है।
- शिप्रा नदी में इंदौर की कान्ह नदी का गंदा पानी अभी भी मिल रहा है, जिसके चलते हर बार स्नान पर नर्मदा का पानी लिया जाता है और प्रदूषित पानी बाहर आ जाता है। हर बार पानी लेने पर करोड़ों रुपए का खर्च हो रहा है। स्थायी हल आज तक नहीं निकाला गया।