धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है । इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। सूर्योदय से पूर्व स्नान करके आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले की जड़ में दूध चढ़ाकर रोली, अक्षत , पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते है। आज कार्तिक माह की नवमी तिथि और इस तिथि पर आंवला नवमी का त्योहार है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है। द्वापर युग की शुरुआत कार्तिक शुक्ल नवमी को हुई थी ,यह युगादि तिथि है। आज के ही दिन श्री विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था। जिसके रोम से कुष्मांड-सीताफल की बेल निकली थी ,इसीलिए इसे कुष्मांडक नवमी भी कहा जाता है। देखा जाए तो यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है क्योंकि आंवला पूजन पर्यावरण के महत्व को दर्शाता है ,जागरूक करता है। प्रदूषण आदि से शरीर कि रक्षा करता है। इस दिन आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -समृद्धि की कामना की जाती है । इस दिन किया गया तप, जप , दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त कर मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है । इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है।

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