वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया पर शुक्रवार को अक्षय तृतीया मनाई गई। इस अवसर पर शहर के विभिन्न मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालु भगवान को जल से भरा मिट्टी का कलश व मौसमी फल अर्पित करने को पहुंचे। इसके पहले घरों में मटकों की पूजा की गई। देवालयों में दिन भर धार्मिक आयोजन होगें। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर किए गए दान का कभी क्षय नही होता है।
भगवान परशुराम जयंती व अक्षय तृतीया पर लोगों ने भगवान विष्णु व उनके अवतार परशुराम की पूजा-अर्चना की। भगवान को सत्तु का भोग लगाया गया। मंदिरों में जल से भरा मिट्टी के कलश के साथ श्रद्धालुओं की भीड़ रही। पर्व पर ब्राह्मण भोज व भीक्षुकों को दान देना पुण्यकारी माना गया है। इसलिए पूजा के बाद लोगों ने ठंडे पानी से भरा घड़ा, सत्तू व मौसमी फल दान में दिया। मान्यतानुसार अक्षय तृतीया के बाद ही सत्तू व आम का उपयोग खाने में किया जाता है। आखा तीज पर शिव मंदिरों में जल से भरे कलश पर खरबूजा रखकर दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान शिव के मंदिर में गलंतिका बंधन का विधान भी है। दोपहर में भगवान लक्ष्मी नारायण का पूजन किया जाता है।
वैष्णव मंदिरों में बदलेगी ठाकुरजी की दिनचर्या-
पुष्टीमार्गीय वैष्णव मंदिरों में अक्षय तृतीया से भगवान ठाकुरजी की दिनचर्या बदलेगी। भगवान को गर्मी ना लगे इसके लिए भगवान को चंदन अर्पित कर शीतल सामग्री का भोग लगेगा। पुष्टीमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में अक्षय तृतीया से गर्मी की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन से ठाकुरजी की हवेलियों में ठाकुरजी के लिए दरवाजे खिड़कियों पर खस की टाटी लगाई जाएगी, ताकि गर्म हवा नही लगे। ठाकुरजी के सम्मुख फव्वारे लगाए जाएंगे। मोगरे के फूलों से फूल बंगला सजाया जाएगा। मटके के शीतल जल की सेवा प्रारंभ होगी। यह क्रम आषाढ़ शुक्ल द्वितिया तिथि तक जारी रहेगा।