दिल्ली में 25 दिन से किसानों का आंदोलन चल रहा है। किसान अब आने वाले दिनों की तैयारी में जुट गए। आंदोलन में शामिल होने के लिए जहां पंजाब के अलग-अलग जिलों के किसान संगठनों ने डेरा जमाया हुआ है, वहीं ऐसे बहुत से किसान भी पहुंचे हुए हैं, जो कर्ज के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाए। आंदोलन में माझा और दोआबा के ज्यादा किसान हैं। फाजिल्का, मुक्तसर, फिरोजपुर और बठिंडा के किसान न के बराबर हैं। लुधियाना, अमृतसर, जालंधर, पटियाला के तो मानों सभी किसान यहीं हों। एक एकड़ वाले किसान भी आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं। रविवार को भास्कर टीम ने अलग-अलग किसानों से बातचीत की। एक कॉमन तथ्य सामने आया कि जिन किसानों के बच्चे विदेश में सेटल हैं, उन पर कोई कर्ज नहीं है।

जिनके बच्चे अभी सेटल नहीं हुए, उन पर प्रति एकड़ औसत एक लाख रुपए का कर्ज है। कर्जदार और कर्जमुक्त किसान, दोनों कहते हैं कि पहले से वे मुश्किल दौर से गुजर चुके हैं या गुजर रहे हैं। अब सरकारें चाहती हैं कि किसान उनका गुलाम हो जाए। वे ऐसा नहीं होने देंगे और न ही इन गुलामी की जंजीरों को किसी भी सूरत में पहनेंगे। पढ़िए किसानों से बातचीत।

हर माह 7500 ब्याज जाता है, मूलधन वहीं खड़ा है : गुरचरण
गांव धूड़ का गुरचरण सिंह कुछ दिनों से यहां आए हुए हैं। वह एक किसान यूनियन के बैनर तले आंदोलन में कूच कर चुके हैं। उनकी 6 एकड़ जमीन है और कर्ज 7 लाख रुपए है, जो आढ़तिये से लिया हुआ है। महीने का 7000 से 7500 रुपए ब्याज बनता है। आढ़तिया छमाही ब्याज वसूलता है, लेकिन पुराने समय से कर्ज में डूबने के बाद अब भी निकल नहीं पाए। वह तीनों कृषि कानूनों के बारे में विस्तार से तो नहीं जानते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि अगर अब न उठे तो सारी उम्र सोना पड़ेगा।

कानून लागू हुआ तो फसल नहीं बिकेगी : रविंद्र
आंदोलन में हिस्सा ले रहे ठक्करवाल गांव के रविंद्र सिंह (लुधियाना) के पास 8 एकड़ जमीन है और बैंक का कर्ज 8 लाख रुपए है। ब्याज दर 4% से 9% है। हर कर्ज पर अलग-अलग ब्याज है। लेकिन जो भी पड़ रहा है, वह ब्याज भरने में भी असमर्थ हैं। पहले ज्यादा कर्ज था, अब धीरे-धीरे उतर रहा है। कृषि कानूनों के लागू होने से अंग्रेजों जैसी हुकूमत शुरू हो जाएगी। यहां आने का कारण पूछा तो बोले- कानून लागू हुए तो उनकी फसल की खरीदारी बंद हो जाएगी।

32 लाख कर्ज, सरकार पीड़ा समझे : हरजीत

हरियाणा (होशियारपुर) के हरजीत सिंह की 32 एकड़ जमीन है। 32 लाख रुपए के करीब ही कर्ज है। घर में विवाह-शादी हो तो भी कर्ज लेना पड़ता है। सरकारों से उम्मीद थी कि वे किसानों की पीड़ा को समझेंगी, लेकिन उलट हो गया। केंद्र उनको अपना नौकर बनाना चाहती है, वह ऐसा होने नहीं देंगे। कृषि कानून लागू हुए तो उनकी फसल का पैसा नहीं मिलेगा। एमएसपी के अनुसार पैसा मिल जाता है लेकिन आगे जाकर न मिला तो कर्ज दोगुना हो जाएगा।

5 लाख कर्ज, एमएसपी खत्म तो कर्जमुक्त न हो पाएंगे: महेंद्र

बहोरा गांव (मोहाली) के किसान महेंद्र सिंह के पास 5 एकड़ जमीन है, कर्ज भी 5 लाख है। वह भी आढ़तिए की देनदारी है। वह कभी भी कर्ज से बाहर नहीं आए। आमदन तो पहले से ही कम थी। एमएसपी खत्म हुई तो कभी कर्जमुक्त नहीं हो सकेंगे। चिंताएं कम नहीं थी जो अब सरकार और परेशान करने पर उतारू हो गई।

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