अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने बुधवार को उज्जैन संभागयुक्त को ज्ञापन सौंपा। इसमें उन्होंने प्रदेश भर में पुजारियों द्वारा अपने आप को मुख्य पुजारी पद पर बताने और अपनी गाड़ियों पर मुख्य पुजारी लिखवाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि नगर और प्रदेश में किसी भी मंदिर में मुख्य पुजारी की स्थापना या पद नहीं हैं। इसके बाद भी कई लोग मुख्य पुजारी पद पर आसीन बताते हैं।

पुजारी महासंघ ने ज्ञापन के माध्यम से बताया कि पूरे देश एवं मध्यप्रदेश में हजारों मंदिर हैं। वहां कोई मुख्य पुजारी नहीं होता है, लेकिन कुछ समय से नगर और प्रदेश के मंदिरों के कई पुजारियों ने अ.भा.पुजारी महासंघ को मुख्य पुजारी विषय को लेकर अवगत कराया कि कई पुजारी लोग अपने आप को मुख्य पुजारी बताते हैं। अपने नाम के आगे मुख्य पुजारी शब्द का उपयोग करते हैं। उनके वाहनों पर भी मुख्य पुजारी लिखा हुआ देखा जा सकता है। इस कारण उन्हीं के समकक्ष जो पुजारी होते हैं, वे अपने आप को अपमानित महसूस करते हैं।

इस विषय को लेकर अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पुजारी एवं सचिव रूपेश मेहता ने संभागायुक्त से भेंट की। उनसे निवेदन कर पुजारियों का पक्ष रखा कि नगर और प्रदेश में किसी भी मंदिर में मुख्य पुजारी की स्थापना या पद नही हैं।

महेश पुजारी ने कहा कि मंदिरों में परंपरा अनुसार जो पुजारी हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा देते आ रहे हैं, वे वंशानुगत पुजारी माने जाते हैं। जो राजघराने की ओर से पुजा करते हैं, वे नेमनुकदार ब्राह्मण होते हैं, जो केवल नेमनुक प्राप्त करते हैं। जो वंशानुगत पुजारी होने के साथ शासन से नेमनुक प्राप्त करते हैं, वे नेमनुकदार पुजारी होते हैं। जहां प्रशासन द्वारा शासकीय पुजारी नियुक्त किए जाते हैं, जिन्हें वेतन दिया जाता है, वे भी प्रशासन के वेतनभोगी कर्मचारी से ज्यादा कुछ नहीं हैं।

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