दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब पहुंचे। मोदी गुरु तेगबहादुर की पुण्यतिथि पर गुरुद्वारे पहुंचे थे। खास बात ये थी कि उनकी इस यात्रा के लिए दिल्ली में ट्रैफिक के लिए कोई विशेष इंतजाम या प्रतिबंध नहीं लगाए गए थे। गुरुद्वारे में भी श्रद्धालुओं ने बिना किसी रोक-टोक के पीएम मोदी के साथ सेल्फी ली।

मोदी ने कहा, ‘आज सुबह मैं ऐतिहासिक गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब प्रार्थना के लिए गया। यहां गुरु तेगबहादुरजी की पवित्र देह का अंतिम संस्कार किया गया था। मैं बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं। दुनिया के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी गुरु तेगबहादुरजी की विनम्रता से प्रेरणा ले रहा हूं।’

किसानों को संदेश देने की कोशिश?
मोदी के गुरुद्वारे में मत्था टेकने की इस इवेंट को किसान आंदोलन के जोड़ा जा रहा है। किसानों और केंद्र के बीच लगातार बातचीत असफल रहने के दौरान ऐसा कहा जा रहा है कि मोदी ने गुरुद्वारे जाकर किसानों को मैसेज देने की कोशिश की है।

PM की अरदास के बीच सबद- उपदेश नहीं माने तो धर्मराज के आने पर कहां जाओगे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुरुद्वारे में मत्था टेकने पहुंचे, उस वक्त वहां सबद चल रही थी। गुरुमुखी में हो रही इस सबद का अर्थ है, “बेशक तुम सेवा करते हो, संगत करते हो, लेकिन तुम्हारी सोच में तब्दीली नहीं आई और भले ही तुमने कितने भी धर्मग्रंथ पढ़लिए हों। पर, धर्म ग्रंथों के जो उपदेश मानवता के भले के लिए, परमात्मा की बंदगी के लिए हैं और उन्हें तुमने नहीं समझा तो जब धर्मराज आएंगे, जब तुम्हारा वक्त आएगा तो बताओ तुम कहां-कहां भागोगे? काल से कोई बचा है क्या? ये तुम भी मत भूलना कि ऐसा कभी होगा।’

MP किसान सम्मेलन में चर्चा करने की अपील की थी
इससे पहले प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को मध्यप्रदेश के किसान सम्मेलन में एक बार फिर कृषि कानूनों की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि अगर शंका है तो सिर झुकाकर, हाथ जोड़कर बात करने के लिए तैयार हैं। किसानों की उन सभी मांगों को पूरा कर दिया गया है, जिन्हें बरसों से रोका गया था।

क्यों खास है रकाबगंज साहिब गुरुद्वारा?

  • श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। हर साल 19 दिसंबर को उनकी शहादत को याद किया जाता है।
  • श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने 17वीं शताब्दी के दौरान सिख धर्म का प्रचार किया।
  • वर्ष 1975 में उन्होंने प्राणों का बलिदान कर दिया था।
  • उनके पार्थिव शरीर का रकाबगंज साहिब में ही अंतिम संस्‍कार किया गया था।
  • दिल्ली में दो गुरुद्वारे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत के प्रतीक हैं, एक रकाबगंज साहिब और दूसरा गुरुद्वारा सीस गंज साहिब।

इस्लाम अपनाने से गुरु तेग बहादुर ने इंकार कर दिया था
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने इस्‍लाम धर्म अपनाने से इंकार कर दिया था। इस पर मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर चांदनी चौक में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का सिर कलम किया गया था। श्री गुरु के भाई जैता जी उनका शीश लेकर आनंदपुर रवाना हो गए जबकि भाई लक्‍खी शाह धड़ को अपने घर ले गए।

उन्‍होंने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्‍कार करने के लिए अपने पूरे घर को आग लगा दी। इसी जगह पर गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब बना। गुरु जी के सिर का अंतिम संस्‍कार उनके बेटे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने किया, जो बाद में सिखों के दसवें गुरु बने। यह वही जगह है जहां जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी रणभूमि की ओर चले तो घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी। अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है।

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